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"अपने सफर पर / अरविन्द कुमार खेड़े" के अवतरणों में अंतर

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17:14, 26 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

कुछ नहीं है मेरे झोले में
सिवाय कुछ दुआओं के
कुछ बद्दुआओं के
दिन भर जो कमा कर लाता हूँ
रात को ही करनी पड़ती हैं अलग-अलग
आहिस्ता से सहेज कर
रखता हूँ दुआओं को अलग
बद्दुआओं की गठरी बना कर
सिरहाने रख सो जाता हूँ
पौ फटते ही दुआओं को
डाल देता हूँ आकाश में
चोंच भर दानों की तलाश में
पेट लिए
उड़ान भरने को निकले पंछी
चुग लेते हैं हाथों-हाथ
आज की रात
और अगली सुबह के लिए
झोला लेकर मैं चल पड़ता हूँ
अपने गंतव्य पर
अपने सफर पर.