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राग पीलू-मिश्र, कहरवा 29.9.1974
तेरा खेल अनोखा प्यारे!
अपना जाल आप फैलाया, आपहि खाया धोखा प्यारे!
आपहि खेल खिलाड़ी आपहि, आपहि सो अवलोका प्यारे!
ऐसी भूल हुई आपहि कों, रही भूल, खुद खोया प्यारे!॥1॥
आप बँधा अपनी कारा<ref>जेल</ref> में, निज को निज ने रोका प्यारे!
ढूँढ़-ढूँढ़कर थका न फिर भी पाया कोइ झरोखा प्यारे!॥2॥
जब फुछ कृपा हुई अपने पर आप दुःख बन ठोका प्यारे!
सुख में भी जब दुख ही देखा तब दीखा इक मोखा<ref>छिद्र</ref> प्यारे!॥3॥
सुनी पुकार जभी प्रीतम की तब समझा सब धोखा प्यारे!
बाहर आया तो पाया प्रिय का पथ दर्शक चोखा प्यारे!॥4॥
आपहि बन अपना पथदर्शक पहुँचा प्रिय के ओका<ref>गृह, आश्रय</ref> प्यारे!
आपहि प्रिय अरु आपहि प्रेमी, मिटा भेद का धोखा प्यारे!॥5॥
शब्दार्थ
<references/>