भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कालिय दमन / सुजान-रसखान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह=सुजान-रसख...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:00, 12 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

कवित्‍त

आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत हैं,
           दोऊ प्रानी सब ही के काज नित धावहीं।
ते तौ रसखानि जब दूर तें तमासो देखैं,
          तरनितनूजा के निकट नहिं आवहीं
आन दिन बात अनहितुन सों कहौं कहा,
         हितू जेऊ आए ते ये लोचन रावहीं।
कहा कहौं आली खाली देत सग ठाली पर,
          मेरे बनमाली कों न काली तें छुरावहीं।।122।।

सवैया

लोग कहैं ब्रज के सिगरे रसखानि अनंदित नंद जसोमति जू पर।
छोहरा आजु नयो जनम्‍यौ तुम सो कोऊ भाग भरयौ नहिं भू पर।
वारि कै दाम सँवार करौ अपने अपचाल कुचाल ललू पर।
नाचत रावरो लाल गुजाल सो काल सों व्‍याल-कपाल के ऊपर।।123।।