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"कालिय दमन / सुजान-रसखान" के अवतरणों में अंतर
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कवित्त
आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत हैं,
दोऊ प्रानी सब ही के काज नित धावहीं।
ते तौ रसखानि जब दूर तें तमासो देखैं,
तरनितनूजा के निकट नहिं आवहीं
आन दिन बात अनहितुन सों कहौं कहा,
हितू जेऊ आए ते ये लोचन रावहीं।
कहा कहौं आली खाली देत सग ठाली पर,
मेरे बनमाली कों न काली तें छुरावहीं।।122।।
सवैया
लोग कहैं ब्रज के सिगरे रसखानि अनंदित नंद जसोमति जू पर।
छोहरा आजु नयो जनम्यौ तुम सो कोऊ भाग भरयौ नहिं भू पर।
वारि कै दाम सँवार करौ अपने अपचाल कुचाल ललू पर।
नाचत रावरो लाल गुजाल सो काल सों व्याल-कपाल के ऊपर।।123।।