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सवैया
कंस के क्रोध की फैलि रही सिगरे ब्रजमंडल माँझ फुकार सी।
आइ गए कछनी कछिकै तबहीं नट-नागरे नंद कुमार-सी।।
द्वैरद को रद खैंचि लियौ रसखान हिये माहि लाई विमार-सी।
लीनी कुठौर लगी लखि तोरि कलंक तमाल तें कीरति-डार सी।।247।।