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"रानी कौशिल्या के ललना / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रानी कौशिल्या के ललना,
सुधर बन आये ललना।
शीश पे सोहे कंकरेजी चीरा
कैसे लगे हैं फुंदना। सुधर...
तैंतीस कोटि बराती आये,
राजा जनक के अंगना। सुधर...
रूप रंग सब मोह लिये है,
मणि माणिक लगे कंगना। सुधर...
तन सोहे केसरिया जामा,
सखियां गावें बन्ना। सुधर...