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उनटे तेरह चास करै’ छथि
चक्रक गति निर्माणक युगमे
उनटे तेरह चास करै’ छथि।
अपन प्रशंसा अपने मुँहसँ
द्वारि-द्वारि पर कयने घूरथि
जकर जेहन छै’ चालि तकर सङ
टुकदुम-टुकदुम तहिना पूरथि,
बैसल बगुलीकेर टकाकेँ
पाँचक आइ पचास करै’ छथि।
जे जेम्हरे पौलनि, सन्हिअयला,
जे जेम्हरे चुकला, भुतिअयला,
छल सुतिआयल, से अछि कोंढ़गर,
भोंटगर सब सहजहि सुतिअयला,
बहुतोमे पल्लास भरल आ
बहुतो दीर्घ-निसास भरै’ छथि।
बुझनिक सब धोकड़ी बनबौलनि,
किछ पुजने, सब ठाम पुजौलनि;
जे जेम्हरे पौलनि, से धयलनि,
किछु खयलनि, किछु काँख दबौलनि,
युग धयलक अछि तेहन चालि
ब्रह्माझा सेहो फाँस पड़ै छथि।
ढोलकी पर की-की ने बाजत,
बुढ़बा सब की-की ने साजत,
जतय भयंकर दाग पड़ल अछि
ततय-ततय अँकड़ी दय माँजत
छुछुआयल हम सब फिरैत छी,
ओ सब भोग-विलास करै’ छथि।
आके घुथुर खाथु ने बैसल,
तनिको पेट दरिद्रा पैसल,
महादेव छथि वज्र-बूढ़, जग
जनिका अढरन-ढरन बुझै’ छल
घोंटि-घाँटि तनिको लय राखू,
अच्छत-फूल निंघास करै छथि।
राकस जकाँ करै’ छथि भुक-भुक
तेँ करैत अछि जीमे धुक-धुक,
अस्ताचल धरि पहुँचि कतेको
आब करै’ छथि लुक-भुक, लुक-झुक
हँफने छथि सरिआ कय जे सब
से की घोड़ी-घास करै’ छथि।
उनटे तेरह चास करै छथि।
रचना काल 1949 ई.