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जब तेरही में
बाबू क पिण्डा लगलीं पारे
त अस-अस पंडित जी
लगलन दूहे-गारे
आ पढ़ि-पढ़ि मंतर
कसरत करावत
उठावत बइठावत
मंडप में हमके
लगलन उबारे
अंत में बाबू के
गया में बइठवा दिहलन
फल्गू किनारे
आहि हो दादा!
फिर बैतलवा
डाढ़े क डाढ़
कुल कइल धइल
डाढ़ पर डाढ़
जे रुढ़िवादी क
पकड़ी आजु पोंछ
ऊ जिनिगी भर
गुलाम रही
पाई ना मोक्ष।।