भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाँगाहाँगा वनभरि चैत फुलेछ / हरिभक्त कटुवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिभक्त कटुवाल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:52, 24 फ़रवरी 2015 का अवतरण

हाँगाहाँगा वनभरि चैत फुलेछ
थाहा नपाई मनभित्र बैंस फुलेछ।
कताकता कसैलाई भेटेभेटे झैं
संग्लो पानी पिई तिर्खा मेटेमेटे झैं
कोहो कोहो दुई आँखामा आई डुलेछ
थाहा नपाई मनभित्र पृत फुलेछ।
एक जोडी आँखा सधैं हाँसु हाँसु झैं
एउटा माला फूल टिपी गाँसु गाँसु झैं
कसोकसो बिहानीको निद खुलेछ
थाहा नपाई मनभित्र पृत फुलेछ।