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16:31, 1 मार्च 2015 के समय का अवतरण

हे सभ्य समाज के
व्यंग्य बाणो!
तुम्हें मेरा शत्-शत् प्रणाम
कोटि-कोटि धन्यवाद,
आखिर तुम मेरे
श्रद्धेय हो
पूजनीय हो
प्रेरणा हो,
तुम्हीं ने धकेला है मुझे
साधारणता से
असाधारणता के मार्ग पर।
तुम्हीं ने छीना है मुझसे
मेरा संकोच, मेरी लज्जा
मेरा भय, मेरी सज्जा,
तुम ही ने किया है निर्माण
मुझ ही को तोड़कर
मुझ ही से मेरे
प्रस्तर व्यक्तित्व का
तुम्हीं ने प्रदान की है मुझे
दृढ़ इच्छाशक्ति।
आशा और निराशा
पाने और खो जाने के
भय से छुटकारा,
घनघोर अंधेरों से
केवल और केवल
आशा की ओर
सत्य की ओर
सफलता की ओर
इच्छित की ओर
बढ़ते जाने का साहस।
तुम्हें शत्-शत् प्रणाम
कोटि-कोटि धन्यवाद
आख़िर तुम मेरे
श्रद्धेय हो
पूजनीय हो
प्रेरणा हो, परंतु
हे सभ्य समाज के
व्यंग्य बाणो, सावधान!
तुम कोई भी अवसर
मुझे तोड़ने का
झिंझोड़ने का
रूलाने का, सताने का
चूक ना जाना,
भरपूर करो वार,
और वार पे वार
और करो इंतज़ार
मेरे संपूर्ण प्रस्तर होने का
क्योंकि, तब तक
तुमसे टूटते-टूटते
मैं
तुम्हें तोड़ने योग्य हो जाऊंगी।