भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कश्मकश / दीप्ति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:08, 19 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खिंच गई चेहरे पे लकीरें आके टूटे दिल से
छुपा रखा था जो दर्द परतों में
रह - रह के लगा रिसने फिर से!

चाहा था जितना दूर रहना
जुड़ती गई उतना ही गहरे उन से
उनकी ओर दौड़ता रहा मन
जाती जितना, पीछे मैं तेज़ी से!

छुपा रखा था जो दर्द परतों में
रह - रह के लगा रिसने फिर से…

बीते समय की दीवारों में कैद
रिश्ते मुस्कुराते हैं - हौले से
आलों, झरोखों में बसी यादें,
उदासी में खिलखिलाती हैं - शोखी से!

छुपा रखा था जो दर्द परतों में
रह - रह के लगा रिसने फिर से…

समय के साथ कदम से कदम मिला के
चलती रही यूँ तो हिम्मत से
पर, बीतते समय के साथ
अब थके पाँव देखते हैं मुझे हैरत से!

छुपा रखा था जो दर्द परतों में
रह - रह के लगा रिसने फिर से…

न पीछे लौटना मुमकिन
न आगे बढ़ना आसान
एक ठहराव पे ठिठक गई है
ज़िन्दगी जैसे एक मुद्दत से!

छुपा रखा था जो दर्द परतों में
रह - रह के लगा रिसने फिर से...