भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पानी / त्रिलोक सिंह ठकुरेला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:55, 20 मार्च 2015 के समय का अवतरण

पानी से हर बूँद बनी है,
पानी का ही सागर ।
नभ में बादल दौड़ लगाते,
भर पानी की गागर॥

पानी से ही बहते झरने,
नदियाँ नाले बहते।
ताल-तलैया, झील, सरोवर
पानी से शुभ रहते॥

पानी से ही फसलें उगतीं,
हर वन उपवन फलता।
पानी से ही इस वसुधा पर
सबका जीवन चलता॥

आओ, बचत करें पानी की
पानी उत्तम धन है।
पानी से ही यह जग सुन्दर
पानी से जीवन है॥