भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आली मनमोहन के मारै / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईसुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:17, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण
आली मनमोहन के मारै।
जमना गैल बिसारें।
जब देखो तब खड़े कुंज में।
गहें कदम की डारैं।
जो कोऊ भूल जात है रास्ता
बरबस आन बिठारैं।
जादौं नई हँसी काऊसों।
जा नइ रीत हमारैं।
ईसुर कौन चाल अब चलिये,
जे तो पूरौ पारें।