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"रोमैं लयें रागनी जी की / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
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16:40, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
रोमैं लयें रागनी जी की।
लगे सुनत मैं नीकी।
कौऊ सास्त्र पुरान अठारा।
चार बेद सो झीकी।
गैरी भौत अथाह भरी है।
थायमिलै ना ई की।
ईसुर साँसऊँ सुरग नसैनी,
रामायण तुलसी की।