भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बखरी रैयत है भारे की / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:44, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
बखरी रैयत है भारे की,
दई पिया प्यारे की।
कच्ची भीत उठी माटी की,
छाई फूस चारे की।
वे बन्देज बड़ी बे बाड़ा,
तई पै दस व्दारे की।
किबार-किवरियाँ एकऊ नइयाँ,
बिना कुची तारे की।
‘ईसुर’ चाँय निवारों जिदना,
हमें कौंन बारे की।