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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
हौनी दो पग चलत अँगरैं,
सब तन चलत पिछारैं।
जैसुइ जान घरों आँगे खाँ,
मार देह का धारें।
करमन वचन करत है ओई,
होनी जौन विचारे
सुर मुन नर आकुल है, ‘ईसुर’,
ई होनी के मारे।