भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"राखें मन पंछी ना रानें / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:20, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
राखें मन पंछी ना रानें,
इक दिन सब खाँ जानें?
खालो पीलो, लैलो दैलो,
ये ही लगै ठिकानें,
कर लो धरम कछूबा दिन खाँ,
जा दिन होत रमानैं।
ईसुर कई मान लो मोरी,
लगी हाट उठ जानैं।