भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाँके बजैं पैजनाँ धुनके / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:26, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
बाँके बजैं पैजनाँ धुनके।
परे पगन में उनके।
सुन तन रौम-रौम कड़ आवत,
धीरज रहत ना तनके।
खेलत फिरत गैल खोरन मेंख
सुर मुख्त्यार मदन के।
करने जोंग लोग कुछनाते,
लुट गये बालापन के
ईसुर कौन कसायन डारे,
जे ककरा कसकन के।