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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
हमसें दूर तुमारी बखरी,
हमें रजऊजा अखरी।
हो पावे बतकाव न पूरौ
घरी भरे खाँ छकरी।
परत नहीं हैं द्वार सामनें,
खोर सोऊ है सकरी
बेरा बखत नजर बरकाकें
कैसे लेवे तकरी
छिन आवें छिन जाय ईसुरी
भए जात हैं चकरी।