भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:33, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे,
रूप जाब थके हौ तुम हारे।
ससुर हमारे गये परदेसै,
छाये विदेस पिया प्यारे।
कर लइयो आराम भवन में
लाल पलंग दें लटकारे
हमनें सुनी एई गलियन में
गये वटोई दो मारे।
काटौ सुख से रेंन ईसुरी
उठ जइयो यार मोर पारें।