"चूहे चार / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | दिन बीता फिर आई शाम, | + | ::::दिन बीता फिर आई शाम, |
− | लोग लगे करने आराम। | + | ::::लोग लगे करने आराम। |
− | चूहे रहे समाए बिल में, | + | ::::चूहे रहे समाए बिल में, |
− | जान पड़ी उनकी मुश्किल में। | + | ::::जान पड़ी उनकी मुश्किल में। |
बिल्ली कहती म्याऊँ म्याऊँ, | बिल्ली कहती म्याऊँ म्याऊँ, | ||
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ। | चूहे निकलें तो मैं खाऊँ। | ||
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सूझा एक उपाय उन्हें तब, | सूझा एक उपाय उन्हें तब, | ||
मुरदा बन करके निकले सब। | मुरदा बन करके निकले सब। | ||
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− | चारों निकले बन कर गुमसुम। | + | ::::चारों निकले बन कर गुमसुम। |
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− | लेकिन पाया अकड़ा उनको। | + | ::::लेकिन पाया अकड़ा उनको। |
− | बोली - मरे न खाऊँगी मैं, | + | ::::बोली - मरे न खाऊँगी मैं, |
− | और कहीं अब जाऊँगी मैं। | + | ::::और कहीं अब जाऊँगी मैं। |
चली वहाँ से गई बिलैया, | चली वहाँ से गई बिलैया, | ||
लगे खेलने चारों भैया। | लगे खेलने चारों भैया। |
18:12, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बिल में बैठे चूहे चार,
चुपके चुपके करें विचार।
बाहर आएँ जाएँ कैसे?
अपनी जान बचाएं कैसे?
बिल के बाहर बिल्ली रानी,
बैठी बिन दाना ,बिन पानी।
रह रह बोले म्याऊँ म्याऊँ,
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।
दिन बीता फिर आई शाम,
लोग लगे करने आराम।
चूहे रहे समाए बिल में,
जान पड़ी उनकी मुश्किल में।
बिल्ली कहती म्याऊँ म्याऊँ,
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।
चूहे कहते चूँ चूँ चूँ चूँ,
बिल्ली को हम चकमा दें क्यूँ?
सूझा एक उपाय उन्हें तब,
मुरदा बन करके निकले सब।
बाहर कर अपनी अपनी दुम,
चारों निकले बन कर गुमसुम।
बिल्ली ने झट पकड़ा उनको,
लेकिन पाया अकड़ा उनको।
बोली - मरे न खाऊँगी मैं,
और कहीं अब जाऊँगी मैं।
चली वहाँ से गई बिलैया,
लगे खेलने चारों भैया।
किया दूर तक सैर सपाटा,
जो पाया सो कुतरा काटा।