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"कलाबोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

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आइ पुनि की सुना रहलहुँ अश्वकोषक ललित भाषा?
शोक हरबा लय अशोकक चक्र चालित पथ विभाषा?
आइ की पुनि नचा रहलहु रचा रति रुचि कला मचे?
गृह तपोवन नन्दिनीकेँ वंदिनी पुर - पथ प्रपचे
मेनकाक सुता न ई थिक, कण्व - पालित प्रकृति - कन्या
हंत! दुष्यन्तहिक दोषेँ घुमा रहलहुँ अन्यमन्या
देखा रहलहुँ की अलोरा गुफा प्रतिमा छवि अनन्या
अजन्ताक कलामुखी किन्नर - सखी रुचि रूप धन
विरह - दग्ध विदग्ध अलका - बालिका हित मेघ दूते
पठा पहलहुँ, चेतनो - अवचेतनो की बुझि सबूते
हंत भृंग चकोर दूतक वचन रुचिरो रुचि न जगबय
रघु कुमारक बान गुन धनु उपर कविकेँ कहू चढ़बय
आइ नहि बिलमाउ माघक मेघ, बनि हरिकेँ पथक बिचा
योजना शिशुपालवध केर धर्मराजक अध्वरक बिच
युद्ध नीति किरात अर्जुन रीति बेणी - संहरण हित
वीर - चरितक उत्तरे भवभूति केर भूकाल सीमित
उदयनक उदयक उदेशेँ लाबनिक लावन्य धूनओ
पुनि युगक यौगन्धरायण संय रन - वन कला घूमओ
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हम न आइ समाधिभाषा सुनब, घुमब न मठ - विहारे
दर्शनक वन बीच मृगदल दलन पंचानन दहाड़े
बचने केर पल्लवन वा संदर्भ - शुद्धिक चारु धारा
कान्त कोमल पदावलि अथवा गिरा शृंगार सारा
कोमला प्राकृति वचन रचना, न वा अवहट्ट हाटे
भ्रमहु हम नहि भ्रमन करबे एखन प्रीतक रीति वाटे
राजभवनक उषा हित नहि चित्रलेखा चित्र अंकन
करओ तूलो लय, गली दय, कला जन - जनपदक टंकन
गृह - गृहिणी आङन न सीमित पारिजातक सुरभि रंजन
अपन परती भूमि पर नन्दन बसाबथु नन्द-नन्दन
गीत-गोविन्दक प्रणय रण-प्रवण परिणत पुण्य गीता
ब्रजक राधा - धब बनथु पुनि धनुष - यज्ञक राम - सीता
नहि पचांरो पर नचायब शिव - भवानी लास्य लीला
ताण्डवक कटुताल भैरव-भैरवी केर काल-क्रीड़ा
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आइ अइयन देव - उत्थानक लिखित हो देश - सीमा
कमल पुरइन पुरओ छवि - पट जय किसान जवान खीसा
आइ फूलक माल पहिरथु गगन - नेता विज्ञ नव्ये
तिलक केसरिया लगाबथु समर जेता भाव भव्ये
आइ अभिनन्दनक चन्दन चढ़ओ अभिनेता न नेता
अन्तरक स्वर तार गुंजओ सर्वभूतहितैक चेता
कर्म-पटु कर मे चुमायब दूभि - अक्षत पान - फूलो
प्रगति - पटु पदकेँ नमायन माथ रेणु चढ़ाय चूलो
वरण करते आइ कवि! तनिके स्वमेव कला कुमारी
रतिक रस लालस न करुणा - कणक, ओज - बलक भिखारी