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आइ नखत न गगन गुनबे, सदा - नीरा नहरि खुनबे
अभय हृदयक संग भुजबल, युक्ति अश्व हँ’कबे
रथक गति अथ प्रगति पथपर, चलत दूर न मंजु मजिल
गति प्रगति - रोधी विरोधी, नहि पुरान कुरान अजिल
ज्ञान नहि विज्ञान रोधी, नव्य नहि भव्यक विरोधी
कल्पना वास्तव न दूरे, योग योग्य प्रयोग पूरे
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एक धरती, भुजा युग्मे, त्रिगुण वृत्त त्रिकोण तिग्मे
धाम चारू पंच नद जल, शास्त्र षट् रस, पुरी सप्तक
अष्ट - छापी अष्ट - गंधक, रत्न नव - नव दिस-विदिश दश
रुद्र एकादशी, द्वादश लिंग, ज्योतिर्मय दिगन्ते
शक्ति पीठहु मठहु मंदिर, तीर्थ कुण्ड न आदि अन्ते
स्तूप चैत्य विहार परिखा, लगओ कतहु न रेख करिखा
पथ - विपथ महजिद मजार, हजार तर्जक गली गड़खा
बुर्ज गिर्जहु अपन तर्जहु पढ़ओ शर्मन, करओ शिजदा
जिद न कनियहु, सव अमनिएँ, स्तवन सबहुक अपन ध्वनिएँ।।
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पथ शत गंतव्य एके, मंत्र कत मंतव्य एके
कतहु कनहु न रोक - छेके, धरथु पथ पद अपन टेके
किन्तु रुचि-संस्कार नाम प्रकार मत अधिकार समतहु
अपन माटिक गंध, पानिक रस किए पुनि अमत समतहुँ!
कवि! नवल संयोजना ई, प्रेरणा पावन पुरातन
सूर्य चन्द्र समान सत्यो नव पुरान न सत सनातन
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आइ इंधन रंधनी नहि केवला काठी फराठी
तरल अतल पताल स्नेहक स्रोत स्रुतिसँ अपन माटी
स्रवित लहु-लहु, द्रवित लोहहु खनि-खनिक मनि मनिक सजने
देश-कोशक कोष भरते अपन साधन शक्ति जनने
अग्नि बज्र गलौत, विद्युत्केँ बजौते छहरि निर्झर
लौह-वृष शिव-वृषभ संगहिँ चरहु चाँचर करत उर्वर
प्रबल प्रज्वल लौह गलि-गुलि तीब्रतम तरुआरि बनतै
ताम्रपर्णी स्वर्ण-पत्री स्व-रस वश संस्कार तनतै
खड खण्डहु शक्ति-पुंज प्रमाण अणु-परमाणु बनतै
‘अणोरणीयान् महतो महीयान्’ मंत्र पुनि झंकार करतै
लवणसँ लावण्य संगहि तत्त्व सत्त्व अनेक झरतै
अम्ल पुनि रस-धुर्य बनतै द्रवण द्रव्यक रूप तनतै
पहुँचतै भू रश्मि-रेखा खगोलो भूगोल बनतै
ग्रह उपग्रह धरि सघन घन खेत ओ खरिहान छनतै
मनुजनुक कर्मण्यतासँ सुरहुकेँ लगतै सेहन्ता
पुनि पुराणक वचन जँचते नवयुगहु बिच सजि अहता
ध्वनि निरन्तर गगनमे गुंजित निरन्तर तत्त्व रचने
देवताहुक सत्य तखने मनुजताकेर स्वत्व जखने
ज्ञान विनु विज्ञान पशुता, प्रकृति विनु चैतन्य जड़ता
उभय सगत, अभय अभिमत, ज्ञान गुण विज्ञान क्षमता
शस्त्र-शास्त्रक प्रेय-श्रेयक, लोक - वेदक प्रति - नवीने
ब्रह्म-क्षात्रक, स्वर्ण-लोहक, श्री-श्रमक गति-विधि प्रवीणे
पीठपर धनु, दीठपर मनु-मन्त्र, कर कुश कर्म लीने
ज्ञान नहि विज्ञान बिनु, नहि तंत्र साधन मंत्र-हीने