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हास्यमयी सहचरी प्रकृतिकेर व्यंग्य तरंगित साओन-भादव!
स्मितमुख वक-पंक्तिएँ व्योम-तल, केतकि व्याज हँसय थल खलखल
विकच कुमुद दन्तावलीक छल हास्य - मुखर सर - सरिता कलकल
दु्रम-दल पल्लव-पुलकित अनुखन व्यंग्य - बिन्दु घन बरिसय अभिनव
हास्यमयी सहचरी प्रकृतिकेर अंग - तरंगित साओन-भादव।।1।।
ओढ़ि मेघ - दल कारी कम्बल, झाँपि चन्द्रमुख अनचिन्हारि छल
घन - पथसँ रहि-रहि कनडेरिए ताकि हँसय - हँसबय अति चंचल
बिजुरि - घटा जनु हास - छटा प्रियतमक संग परिहासक अनुभव
हास्यमयी सहचरी प्रकृतिकेर अंगित इंगित साओन-भादव।।2।।