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"समुद्र का पानी / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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अट्टहास कर  
 
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अधर व्योम के।  
 
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ऐसे में सुन्दरी ! बेचने तू क्या निकली है,  
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अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर
 
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सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?
 
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सरकार !  
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और कुछ नहीं,  
 
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बेचती हूँ समुद्र का पानी।  
 
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तेरे तन की श्यामता नील दर्पण-सी है,  
 
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श्यामे ! तूने शोणित में है क्या मिला लिया ?
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सरकार !  
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सरकार!  
 
और कुछ नहीं,  
 
और कुछ नहीं,  
 
रक्त में है समुद्र का पानी।  
 
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माँ ! ये तो खारे आँसू हैं,  
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ये तुझको मिले कहाँ से ?n
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ये तुझको मिले कहाँ से?
 
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10:57, 24 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

बहुत दूर पर
अट्टहास कर
सागर हँसता है।
दशन फेन के,
अधर व्योम के।

ऐसे में सुन्दरी! बेचने तू क्या निकली है,
अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर
सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?

सरकार!
और कुछ नहीं,
बेचती हूँ समुद्र का पानी।
तेरे तन की श्यामता नील दर्पण-सी है,
श्यामे! तूने शोणित में है क्या मिला लिया ?

सरकार!
और कुछ नहीं,
रक्त में है समुद्र का पानी।

माँ! ये तो खारे आँसू हैं,
ये तुझको मिले कहाँ से?