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"देश-प्रेम / मनोज पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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11:06, 26 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

बार-बार हमें
बताया जाता है कि
बहुत सुंदर है हमारा देश
हजारों हजार प्रेम करने वाले लोगों की
सुनाई जाती है कहानियां

नियम और फायदे गिनाते हुए
संगीनों और बूटों की चमक-धमक के साथ
कहा जाता है कि जो ‘हमारा’ है
इसलिए मान लो कि ‘तुम्हारा’ भी है।

अब लाजमी है कि
प्रेम करो........ तुम

लेकिन...
मैं नहीं कर सकता
नहीं ही कर सकता... कि
मालूम है मुझे
‘एकतरफा प्रेम’ मनोरोग है...