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"मानसरोदक-खंड / मलिक मोहम्मद जायसी" के अवतरणों में अंतर

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एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥
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पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
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कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥
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कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥
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कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥
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कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥
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कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥
  
'''मुखपृष्ठ: [[पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी]]'''
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चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद ।
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बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1॥
  
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खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
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देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
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ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
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जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
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पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
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कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
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सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥
  
एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥<br>
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पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह
पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥<br>
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दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥<br>
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कोइ सु गुलाल सुदरसन राती कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥<br>
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कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥<br>
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कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥<br>
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कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥<br><br>
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चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद <br>
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मिलहिं रहसि सब चढहिं हिंडोरी झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥
बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1॥<br><br>
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झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं ॥
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पुनि सासुर लेइ राखहिं तहाँ । नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥
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कित यह धूप, कहाँ यह छाँहा । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ ॥
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गुन पूछहि औ लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥
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सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे ॥
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कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम भरना ॥
  
खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥<br>
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कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली <br>
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आपु आपु कहँ होइहिं परब पंखि जस डेल ॥3॥
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥<br>
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जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥<br>
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पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥<br>
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कित आवन पुनि अपने हाथा कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥<br>
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सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥<br><br>
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पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह <br>
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सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2॥<br><br>
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ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥
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ओनई घटा परी जग छाँहा । ससि के सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥
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छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥
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भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा ॥
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दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धनुख गगन लेइ राखी ॥
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नैन -खँजन दुइ केलि करेहीं । कुच-नारँग मधुकर रस लेहीं ॥
  
मिलहिं रहसि सब चढहिं हिंडोरी । झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥<br>
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सरवर रूप बिमोहा, हिये होलोरहि लेइ ।
झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं ॥<br>
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पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ ॥4॥
पुनि सासुर लेइ राखहिं तहाँ नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥<br>
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कित यह धूप, कहाँ यह छाँहा । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ ॥<br>
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गुन पूछहि औ लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥<br>
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सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे ॥<br>
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कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम भरना ॥ <br><br>
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कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल <br>
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धरी तीर सब कंचुकि सारी सरवर महँ पैठीं सब बारी ॥
आपु आपु कहँ होइहिं परब पंखि जस डेल ॥3॥<br><br>
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पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली ॥
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करिल केस बिसहर बिस-हरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे ॥
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नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस-भरी ॥
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उठी कोंप जस दारिवँ दाखा । भई उनंत पेम कै साखा ॥
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सरवर नहिं समाइ संसारा । चाँद नहाइ पैट लेइ तारा ॥
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धनि सो नीर ससि तरई ऊईं । अब कित दीठ कमल औ कूईं ॥
  
सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥<br>
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चकई बिछुरि पुकारै , कहाँ मिलौं, हो नाहँ
ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥<br>
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एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह ॥5॥
ओनई घटा परी जग छाँहा । ससि के सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥<br>
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छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥<br>
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भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा ॥<br>
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दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धनुख गगन लेइ राखी ॥<br>
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नैन -खँजन दुइ केलि करेहीं । कुच-नारँग मधुकर रस लेहीं ॥<br><br>
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सरवर रूप बिमोहा, हिये होलोरहि लेइ <br>
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लागीं केलि करै मझ नीरा हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा ॥
पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ ॥4॥<br><br>
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पदमावति कौतुक कहँ राखी । तुम ससि होहु तराइन्ह साखी ॥
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बाद मेलि कै खेल पसारा । हार देइ जो खेलत हारा ॥
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सँवरिहि साँवरि, गोरिहि । आपनि लीन्ह सो जोरी ॥
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बूझि खेल खेलहु एक साथा । हार न होइ पराए हाथा ॥
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आजुहि खेल, बहुरि कित होई । खेल गए कित खेलै कोई ?॥
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धनि सो खेल खेल सह पेमा । रउताई औ कूसल खेमा ? ॥
  
धरी तीर सब कंचुकि सारी सरवर महँ पैठीं सब बारी <br>
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मुहमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्यों खेल ।  
पाइ नीर जानौं सब बेली हुलसहिं करहिं काम कै केली <br>
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तिल फूलहि के सँग ज्यों होइ फुलायल तेल ॥6॥
करिल केस बिसहर बिस-हरे लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे <br>
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सखी एक तेइ खेल ना जाना । भै अचेत मनि-हार गवाँना
नवल बसंत सँवारी करी होइ प्रगट जानहु रस-भरी <br>
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कवँल डार गहि भै बेकरारा कासौं पुकारौं आपन हारा ॥  
उठी कोंप जस दारिवँ दाखा भई उनंत पेम कै साखा <br>
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कित खेलै अइउँ एहि साथा हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा
सरवर नहिं समाइ संसारा चाँद नहाइ पैट लेइ तारा <br>
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घर पैठत पूँछब यह हारू कौन उतर पाउब पैसारू
धनि सो नीर ससि तरई ऊईं अब कित दीठ कमल औ कूईं <br><br>
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नैन सीप आँसू तस भरे जानौ मोति गिरहिं सब ढरे
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सखिन कहा बौरी कोकिला कौन पानि जेहि पौन न मिला?
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हार गँवाइ सो ऐसै रोवा हेरि हेराइ लेइ जौं खौवा
  
चकई बिछुरि पुकारै , कहाँ मिलौं, हो नाहँ <br>
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लागीं सब मिलि हेरै बूडि बूडि एक साथ
एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह ॥5॥<br><br>
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कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥
  
लागीं केलि करै मझ नीरा हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा <br>
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कहा मानसर चाह सो पाई पारस-रूप इहाँ लगि आई
पदमावति कौतुक कहँ राखी तुम ससि होहु तराइन्ह साखी <br>
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भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे पावा रूप रूप के दरसे
बाद मेलि कै खेल पसारा हार देइ जो खेलत हारा <br>
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मलय-समीर बास तन आई भा सीतल, गै तपनि बुझाई
सँवरिहि साँवरि, गोरिहि आपनि लीन्ह सो जोरी <br>
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न जनौं कौन पौन लेइ आवा पुन्य-दसा भै पाप गँवावा
बूझि खेल खेलहु एक साथा हार न होइ पराए हाथा <br>
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ततखन हार बेगि उतिराना पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना
आजुहि खेल, बहुरि कित होई खेल गए कित खेलै कोई ?<br>
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बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा
धनि सो खेल खेल सह पेमा रउताई औ कूसल खेमा ? <br><br>
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पावा रूप रूप जस चहा ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा
  
मुहमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्यों खेल । <br>
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नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर ।
तिल फूलहि के सँग ज्यों होइ फुलायल तेल ॥6॥<br>
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हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥
 
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सखी एक तेइ खेल ना जाना । भै अचेत मनि-हार गवाँना ॥<br>
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कवँल डार गहि भै बेकरारा । कासौं पुकारौं आपन हारा ॥ <br>
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कित खेलै अइउँ एहि साथा । हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा ॥<br>
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घर पैठत पूँछब यह हारू । कौन उतर पाउब पैसारू ॥<br>
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नैन सीप आँसू तस भरे । जानौ मोति गिरहिं सब ढरे ॥<br>
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सखिन कहा बौरी कोकिला । कौन पानि जेहि पौन न मिला? ॥<br>
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हार गँवाइ सो ऐसै रोवा । हेरि हेराइ लेइ जौं खौवा ॥<br><br>
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लागीं सब मिलि हेरै बूडि बूडि एक साथ ।<br>
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कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥<br><br>
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कहा मानसर चाह सो पाई । पारस-रूप इहाँ लगि आई ॥<br>
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भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे ॥<br>
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मलय-समीर बास तन आई । भा सीतल, गै तपनि बुझाई ॥<br>
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न जनौं कौन पौन लेइ आवा । पुन्य-दसा भै पाप गँवावा ॥<br>
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ततखन हार बेगि उतिराना । पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना ॥<br>
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बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा । भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा ॥<br>
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पावा रूप रूप जस चहा । ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा ॥<br><br>
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नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर ।<br>
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हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥<br><br>
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(1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब ।
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(2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा ।
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(3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला ।
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(4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर ।
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मकु =कदाचित् ।
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(5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल ।
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उनंत = झुकती हुई ।
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(6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर ।
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रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल ।
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(1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब ।
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(2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा ।
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(3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला ।
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(4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर । मकु =कदाचित् ।
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(5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल । उनंत = झुकती हुई ।
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(6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर । रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल ।
 
(8) चाह = खबर, आहट
 
(8) चाह = खबर, आहट
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17:43, 27 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥
पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥
कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥
कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥
कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥
कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥

चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद ।
बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1॥

खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥

पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह ।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2॥

मिलहिं रहसि सब चढहिं हिंडोरी । झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥
झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं ॥
पुनि सासुर लेइ राखहिं तहाँ । नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥
कित यह धूप, कहाँ यह छाँहा । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ ॥
गुन पूछहि औ लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥
सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे ॥
कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम भरना ॥

कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल ।
आपु आपु कहँ होइहिं परब पंखि जस डेल ॥3॥

सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥
ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा । नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥
ओनई घटा परी जग छाँहा । ससि के सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥
छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥
भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा ॥
दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धनुख गगन लेइ राखी ॥
नैन -खँजन दुइ केलि करेहीं । कुच-नारँग मधुकर रस लेहीं ॥

सरवर रूप बिमोहा, हिये होलोरहि लेइ ।
पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ ॥4॥

धरी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी ॥
पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली ॥
करिल केस बिसहर बिस-हरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे ॥
नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस-भरी ॥
उठी कोंप जस दारिवँ दाखा । भई उनंत पेम कै साखा ॥
सरवर नहिं समाइ संसारा । चाँद नहाइ पैट लेइ तारा ॥
धनि सो नीर ससि तरई ऊईं । अब कित दीठ कमल औ कूईं ॥

चकई बिछुरि पुकारै , कहाँ मिलौं, हो नाहँ ।
एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह ॥5॥

लागीं केलि करै मझ नीरा । हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा ॥
पदमावति कौतुक कहँ राखी । तुम ससि होहु तराइन्ह साखी ॥
बाद मेलि कै खेल पसारा । हार देइ जो खेलत हारा ॥
सँवरिहि साँवरि, गोरिहि । आपनि लीन्ह सो जोरी ॥
बूझि खेल खेलहु एक साथा । हार न होइ पराए हाथा ॥
आजुहि खेल, बहुरि कित होई । खेल गए कित खेलै कोई ?॥
धनि सो खेल खेल सह पेमा । रउताई औ कूसल खेमा ? ॥

मुहमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्यों खेल ।
तिल फूलहि के सँग ज्यों होइ फुलायल तेल ॥6॥
सखी एक तेइ खेल ना जाना । भै अचेत मनि-हार गवाँना ॥
कवँल डार गहि भै बेकरारा । कासौं पुकारौं आपन हारा ॥
कित खेलै अइउँ एहि साथा । हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा ॥
घर पैठत पूँछब यह हारू । कौन उतर पाउब पैसारू ॥
नैन सीप आँसू तस भरे । जानौ मोति गिरहिं सब ढरे ॥
सखिन कहा बौरी कोकिला । कौन पानि जेहि पौन न मिला? ॥
हार गँवाइ सो ऐसै रोवा । हेरि हेराइ लेइ जौं खौवा ॥

लागीं सब मिलि हेरै बूडि बूडि एक साथ ।
कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥

कहा मानसर चाह सो पाई । पारस-रूप इहाँ लगि आई ॥
भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे ॥
मलय-समीर बास तन आई । भा सीतल, गै तपनि बुझाई ॥
न जनौं कौन पौन लेइ आवा । पुन्य-दसा भै पाप गँवावा ॥
ततखन हार बेगि उतिराना । पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना ॥
बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा । भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा ॥
पावा रूप रूप जस चहा । ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा ॥

नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर ।
हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥

(1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब ।
(2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा ।
(3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला ।
(4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर । मकु =कदाचित् ।
(5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल । उनंत = झुकती हुई ।
(6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर । रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल ।
(8) चाह = खबर, आहट