"मानसरोदक-खंड / मलिक मोहम्मद जायसी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी | |रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी | ||
− | }} | + | |अनुवादक= |
+ | |संग्रह=पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी | ||
+ | }} | ||
+ | <poem> | ||
+ | एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥ | ||
+ | पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥ | ||
+ | कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥ | ||
+ | कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥ | ||
+ | कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥ | ||
+ | कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥ | ||
+ | कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥ | ||
− | + | चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद । | |
+ | बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1॥ | ||
+ | खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥ | ||
+ | देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली | ||
+ | ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥ | ||
+ | जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥ | ||
+ | पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥ | ||
+ | कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥ | ||
+ | सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥ | ||
− | + | पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह । | |
− | + | दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | मिलहिं रहसि सब चढहिं हिंडोरी । झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥ | |
− | + | झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं ॥ | |
+ | पुनि सासुर लेइ राखहिं तहाँ । नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥ | ||
+ | कित यह धूप, कहाँ यह छाँहा । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ ॥ | ||
+ | गुन पूछहि औ लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥ | ||
+ | सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे ॥ | ||
+ | कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम भरना ॥ | ||
− | + | कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल । | |
− | + | आपु आपु कहँ होइहिं परब पंखि जस डेल ॥3॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | पुनि | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥ | |
− | + | ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा । नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥ | |
+ | ओनई घटा परी जग छाँहा । ससि के सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥ | ||
+ | छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥ | ||
+ | भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा ॥ | ||
+ | दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धनुख गगन लेइ राखी ॥ | ||
+ | नैन -खँजन दुइ केलि करेहीं । कुच-नारँग मधुकर रस लेहीं ॥ | ||
− | + | सरवर रूप बिमोहा, हिये होलोरहि लेइ । | |
− | + | पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ ॥4॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | धरी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी ॥ | |
− | + | पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली ॥ | |
+ | करिल केस बिसहर बिस-हरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे ॥ | ||
+ | नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस-भरी ॥ | ||
+ | उठी कोंप जस दारिवँ दाखा । भई उनंत पेम कै साखा ॥ | ||
+ | सरवर नहिं समाइ संसारा । चाँद नहाइ पैट लेइ तारा ॥ | ||
+ | धनि सो नीर ससि तरई ऊईं । अब कित दीठ कमल औ कूईं ॥ | ||
− | + | चकई बिछुरि पुकारै , कहाँ मिलौं, हो नाहँ । | |
− | + | एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह ॥5॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | लागीं केलि करै मझ नीरा । हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा ॥ | |
− | + | पदमावति कौतुक कहँ राखी । तुम ससि होहु तराइन्ह साखी ॥ | |
+ | बाद मेलि कै खेल पसारा । हार देइ जो खेलत हारा ॥ | ||
+ | सँवरिहि साँवरि, गोरिहि । आपनि लीन्ह सो जोरी ॥ | ||
+ | बूझि खेल खेलहु एक साथा । हार न होइ पराए हाथा ॥ | ||
+ | आजुहि खेल, बहुरि कित होई । खेल गए कित खेलै कोई ?॥ | ||
+ | धनि सो खेल खेल सह पेमा । रउताई औ कूसल खेमा ? ॥ | ||
− | + | मुहमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्यों खेल । | |
− | + | तिल फूलहि के सँग ज्यों होइ फुलायल तेल ॥6॥ | |
− | + | सखी एक तेइ खेल ना जाना । भै अचेत मनि-हार गवाँना ॥ | |
− | + | कवँल डार गहि भै बेकरारा । कासौं पुकारौं आपन हारा ॥ | |
− | + | कित खेलै अइउँ एहि साथा । हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा ॥ | |
− | + | घर पैठत पूँछब यह हारू । कौन उतर पाउब पैसारू ॥ | |
− | + | नैन सीप आँसू तस भरे । जानौ मोति गिरहिं सब ढरे ॥ | |
+ | सखिन कहा बौरी कोकिला । कौन पानि जेहि पौन न मिला? ॥ | ||
+ | हार गँवाइ सो ऐसै रोवा । हेरि हेराइ लेइ जौं खौवा ॥ | ||
− | + | लागीं सब मिलि हेरै बूडि बूडि एक साथ । | |
− | + | कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥ | |
− | + | कहा मानसर चाह सो पाई । पारस-रूप इहाँ लगि आई ॥ | |
− | + | भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे ॥ | |
− | + | मलय-समीर बास तन आई । भा सीतल, गै तपनि बुझाई ॥ | |
− | + | न जनौं कौन पौन लेइ आवा । पुन्य-दसा भै पाप गँवावा ॥ | |
− | + | ततखन हार बेगि उतिराना । पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना ॥ | |
− | + | बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा । भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा ॥ | |
− | + | पावा रूप रूप जस चहा । ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा ॥ | |
− | + | नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर । | |
− | + | हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर । | + | |
− | हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥ | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
+ | (1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब । | ||
+ | (2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा । | ||
+ | (3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला । | ||
+ | (4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर । मकु =कदाचित् । | ||
+ | (5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल । उनंत = झुकती हुई । | ||
+ | (6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर । रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल । | ||
(8) चाह = खबर, आहट | (8) चाह = खबर, आहट | ||
+ | </poem> |
17:43, 27 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥
पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥
कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥
कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥
कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥
कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥
चलीं सबै मालति सँग फूलीं कवँल कुमोद ।
बेधि रहे गन गँधरब बास-परमदामोद ॥1॥
खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥
पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह ।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह ॥2॥
मिलहिं रहसि सब चढहिं हिंडोरी । झूलि लेहिं सुख बारी भोरी ॥
झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं ॥
पुनि सासुर लेइ राखहिं तहाँ । नैहर चाह न पाउब जहाँ ॥
कित यह धूप, कहाँ यह छाँहा । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ ॥
गुन पूछहि औ लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू ॥
सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे ॥
कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम भरना ॥
कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल ।
आपु आपु कहँ होइहिं परब पंखि जस डेल ॥3॥
सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥
ससि-मुख, अंग मलयगिरि बासा । नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा ॥
ओनई घटा परी जग छाँहा । ससि के सरन लीन्ह जनु राहाँ ॥
छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥
भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा ॥
दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धनुख गगन लेइ राखी ॥
नैन -खँजन दुइ केलि करेहीं । कुच-नारँग मधुकर रस लेहीं ॥
सरवर रूप बिमोहा, हिये होलोरहि लेइ ।
पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ ॥4॥
धरी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी ॥
पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली ॥
करिल केस बिसहर बिस-हरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे ॥
नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस-भरी ॥
उठी कोंप जस दारिवँ दाखा । भई उनंत पेम कै साखा ॥
सरवर नहिं समाइ संसारा । चाँद नहाइ पैट लेइ तारा ॥
धनि सो नीर ससि तरई ऊईं । अब कित दीठ कमल औ कूईं ॥
चकई बिछुरि पुकारै , कहाँ मिलौं, हो नाहँ ।
एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह ॥5॥
लागीं केलि करै मझ नीरा । हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा ॥
पदमावति कौतुक कहँ राखी । तुम ससि होहु तराइन्ह साखी ॥
बाद मेलि कै खेल पसारा । हार देइ जो खेलत हारा ॥
सँवरिहि साँवरि, गोरिहि । आपनि लीन्ह सो जोरी ॥
बूझि खेल खेलहु एक साथा । हार न होइ पराए हाथा ॥
आजुहि खेल, बहुरि कित होई । खेल गए कित खेलै कोई ?॥
धनि सो खेल खेल सह पेमा । रउताई औ कूसल खेमा ? ॥
मुहमद बाजी पेम कै ज्यों भावै त्यों खेल ।
तिल फूलहि के सँग ज्यों होइ फुलायल तेल ॥6॥
सखी एक तेइ खेल ना जाना । भै अचेत मनि-हार गवाँना ॥
कवँल डार गहि भै बेकरारा । कासौं पुकारौं आपन हारा ॥
कित खेलै अइउँ एहि साथा । हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा ॥
घर पैठत पूँछब यह हारू । कौन उतर पाउब पैसारू ॥
नैन सीप आँसू तस भरे । जानौ मोति गिरहिं सब ढरे ॥
सखिन कहा बौरी कोकिला । कौन पानि जेहि पौन न मिला? ॥
हार गँवाइ सो ऐसै रोवा । हेरि हेराइ लेइ जौं खौवा ॥
लागीं सब मिलि हेरै बूडि बूडि एक साथ ।
कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ ॥7॥
कहा मानसर चाह सो पाई । पारस-रूप इहाँ लगि आई ॥
भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे ॥
मलय-समीर बास तन आई । भा सीतल, गै तपनि बुझाई ॥
न जनौं कौन पौन लेइ आवा । पुन्य-दसा भै पाप गँवावा ॥
ततखन हार बेगि उतिराना । पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना ॥
बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा । भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा ॥
पावा रूप रूप जस चहा । ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा ॥
नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर ।
हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर ॥8॥
(1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब ।
(2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा ।
(3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला ।
(4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर । मकु =कदाचित् ।
(5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल । उनंत = झुकती हुई ।
(6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर । रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल ।
(8) चाह = खबर, आहट