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जय जयति भारत भारती!
अकलंक श्वेत सरोज पर वह
ज्योति देह विराजती!
नभ नील वीणा स्वरमयी
रविचंद्र दो ज्योतिर्कलश
है गूँज गंगा ज्ञान की
अनुगूँज में शाश्वत सुयश
हर बार हर झंकार में
आलोक नृत्य निखारती
जय जयति भारत भारती!
हो देश की भू उर्वरा
हर शब्द ज्योतिर्कण बने
वरदान दो माँ भारती
जो अग्नि भी चंदन बने
शत नयन दीपक बाल
भारत भूमि करती आरती
जय जयति भारत भारती!