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"जीवन / संजय शेफर्ड" के अवतरणों में अंतर

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15:13, 7 मई 2015 के समय का अवतरण

मुझे पता है
एक दिन उड़ते हुए आएगी मृत्य
अपने डैनों को फैलाए
और देह से समेट लेगी उस तत्व को
जिसे लोग जीवन कहते हैं
देह जो खाली देह नहीं है
खोखली हो जाएगी
और खाली कोटरों में
कुछ परिन्दे बना लेंगे घोंसले
फिर शुरू होगी देह की गुटरगू
फिर से लौटेगी जिन्दगी
उन जन्में- अजन्में
अण्डो से बाहर निकलते बच्चों के साथ
जिनके पास उड़ने को पंख नहीं होते
और ना ही चलने को पैर
पर होती हैं उनकी भी माँएं
जो देती हैं उम्मीदें
और एक दिन लौट आता है जीवन
दो नन्हें- नन्हें पैरों
और नर्म- नाज़ुक पंखों के साथ…
हां, ऐसे ही तो मरे हुए देह में लौटता है जीवन