"घटनाएं / संजय शेफर्ड" के अवतरणों में अंतर
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कुछ भी नहीं होता तयशुदा
हर चीज का तय होना बाकि होता है
अच्छी- बुरी घटना के
घटित होने के अंतिम क्षणों में भी
इसीलिए वक़्त को बहने देना है
उस छोर तक जहां नदी शांत होती है
समुंद्र बिलकुल चुप
झरने अपनी गति खो देते हैं
हवाएं शोर नहीं करती
धूप की कतरनें धरती की बजाय
किसी खजूर वृक्ष पर बिछी होती हैं
बारिश की बूंदे ओस बनाने से पहले
बन जाती हैं ओला पत्थर
ऑक्सीजन की एक घूंट भी
सांसों को नहीं हो पाती मुय्यसर
फिर भी बस बहने देना है
उसी त्रीव वेग में
देह जहां जाना चाहती है
आत्मा करना चाहती है
जिस देह- देश में प्रस्थान
बिना किसी पूर्वभावना
बिना किसी संसय, संदेह, संकोच के
बिना किसी पहले से निर्धारित पथ पर
बिना रुके, झुके, परस्पर
क्योंकि यहां तय कुछ भी नहीं है
यहां तय कुछ भी नहीं है
इसका मतलब ही है कि
हम इंसान जन्मजात आजाद हैं
अपनी अंतिम रूह
अपनी अंतिम सांस तक