"घोड़ा / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:54, 10 मई 2015 का अवतरण
अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता।
तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।।
पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में।
बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।।
किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता।
तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।।
उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते।
रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।।
झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता।
और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।।
रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती।
हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।।
सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता।
कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।।
बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे।
और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।।
कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते।
कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।।
हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते।
शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।।
तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते।
‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।।
लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको।
प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।।
नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते।
लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।।