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तक्षशिला नगरी मे ‘नग्गज’ रजा कहिओ
ज्वरपीड़ित उर दाह उठल, सकला नहि सहि ओ
हृदय लेप हित चानन घसबा लय सब ललना
जुटलि, सङहि आङन भरि झनकल कंचन-कङना
सहि न सकथि नृप शब्द, सोचि सभ बलया भाङल
केवल सधबा चिह्न एक चूड़ी टा बाँचल
छनहिं शब्द पुनि शान्त, स्वस्थ नृप मन मे जानल
द्वन्द्व रहित चित रहय शान्त, मत अद्वय मानल