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करबे कोना हम अर्चना?
स्वयं अर्चित अहर्निश वर्चस्विनी छथि देवि
अर्चनीय बनैत छथि कवि जनिक पदकेँ सेवि
अर्चनामे जनिक जागलि उषा रात्रिक शेष
जनिक पदकेँ सहस करसँ परसि रहल दिनेश
स्वयं घसि-घसि शशि चढ़ा रहलाह चन्दन अंग
सिन्धु चरण पखारबे हित बढ़थि उमड़ि तरंग
सुरभि-शीतल मलय-पवनक व्यजन प्रतिपल हाथ
फूल-फल उपहार लय तरु-गण झुकाबथि माथ
दीप मन्दिर-द्वारिपर बरि रहल नखत अनन्त
गन्धवति आतपित धूपित करथि सुरभि दिगन्त
स्तवन-कूजनमे निरन्तर द्विज-कुलक आवेश
नाचि-नाचि रिझा रहल छथि शिखी रंजित-वेश
प्राणमे रक्षित हमर जे भाव तकरा आनि
अहिँक आगाँ समर्पित कय रहल छी हे दानि!
एतबे हमर थिक अर्चना।।