"विडम्बना / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:13, 16 मई 2015 के समय का अवतरण
जे शूल पर झुलइछ तनिक पद, फूल अहँ कि चढ़ायवे?
जे मूल केँ रचइछ स्वयम् तनि चूल अहँ कि सजायवे।
जे वज्रभुज करवाल भँजइछ, तनि कनक-केयूर की?
जे गिरि - शिखर अभ्यस्त पद, रथ उपर तनि न चढ़ायवे।।
ज्वल अनल ज्वाला जनि नयन, सुरमा न चसमा तनि रुचिर।
जे शर - निकर उर पर सहथि तनि हित न हार गढ़ायवे।।
जे कंटकित मुकुट क विकट भट, स्तवक कुसुमक स्तुति न तनि।
जे गिरिक निर्झर जल पिपासु, न कूप-जल भरि लायवे।।
जे सागरक उत्ताल लहरि विशाल तरइछ वितत-भुज।
पुनि तनिक क्रीडा-केलि हित गृह-वापिका न सुनायबे।।
जे मुक्त प्रकृतिक काननक संचरण - पटु पचानने।
तनि घेर-बेढ़क हेतु पुनि पिंजर न हन्त रचायबे।।
जनि राजभवनक शयन, रानिक नयन, शिशु बयनहु रुचिर।
निष्क्रमण रोध न कय सकल, अनुरोध तनि न जनायव।
जे पाशुपत उपलब्धि हित छथि पशुपतिक संधान मे।
तिय रूपसी छवि उर्वशी तनि आगु व्यर्थ नचायबे।।
जे महाभारत समर उत्कट शान्त चित गीता रचथि।
तनि सान्त्वना मे गुनगुना रस - गीत धनि की गायबे?
जनि भृकुटि तनितहिँ क्षुब्ध सागर शान्त, सेतु निबन्धने।
तनि सन्तरण हित काठ एकठा नाओ अकठ चलायबे।।
जे धूलि अणु - परमाणु गढ़इछ शक्ति - गीत परम्परा!
तनि श्रम पुरस्कृत कर’क हित अहँ कनक-कन कि गनायबे।।
जे अन्तरिक्ष-परीक्षणक हित ग्रह-गनक भ्रमनक रसी।
तनि श्रम हरण हित विश्रमक तृण-छाउनी न छरायबे।।
जे धनक धुनि रस-सजल साओन-भादवक सजइछ घटा।
पद - बिन्दु अनुपद सिंचना तनि पथ न हन्त! पटायबे।।