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ई मउवति के पोखरा है
एहमें
भाव-विचार के मछरी
मारल जाली सँ
पानी में पँवरत-कुलेल करत
मछरिन के मरले में
बड़ा मजा आवेला,
टटके रीन्हि-पका के
खा लिहला में
बड़ा सवाद आवेला
पोखरा, गड़हा, गुटुही ताल-खाल नदी नारा में
मछरी मारल
टटके रीन्हल-पकावल, खाईल
ईहे नू जिनिगी है
मारऽ-खा, खा-मारऽ
ई क्रम कबो टूटा ना
बनल रहो हर-हमेशा
एही खातिर
पूजा ह, नमाज है
भक्त ह भगवान ह, सृष्टि के विधान-समाज कल्याण ह।
जबले कुल्ही भाव-विचार के मछरी
मारि ना लीहल जइहें सँ
तवले पोखरा के पानी निर्मल नाहीं होई
हमनी का मछरी खा के अमर हो जाइबि जाँ
मउवति मुँह ताकत रहि जाई।
30.05.93