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असों ना खड़लिचि देखलीं
ना लीलकण्ठ
दसहरा बीति गइल
सरदो ऋतु बीतल जाता
रावण के आ नेता लोगन के पुतला
ढेर जरावत गइल, फुँकाइल-तपाइल
दीया-दीयारी के हर साल
दलिद्दर खेदाला
दूसर पइठे दलिद्दर भागे के नारा
मेहरारू लोग खूब लगावेला
जानत नइखे लोग कि
लक्षिमी के दरबार में पईठे खातिर
साल साल भरि उलुअवन के पूजा होला
सीता हरण का भइल
रमायन लिखा गइल
दरोपदी के लुग्गा का खोलाइल
महाभारत हो गइल
इहाँ होखे जो बलात्कार त
मुआजा पाके लोग धनि धनि हो जाता
व्यास बालमीकि के नाती पनाती लोग
लखटकिया ईनाम लेके
एने ओने अँडुरात फिरता
कहता लोग रामराज नइखे आइल
अब केइसन होला हो, रामराज!
बलात्कार के मजा अलगे
मुआजा इनाम के बहारि अलगे
दूनू एक संगे नइखे घोंटात
अब का लेब
अलुआ?
अनशन करताड़ें,
नरेटी के भीतर से
नारा चिघारि चिघारि के
गटई फारति बाड़ें
बूझत नइखें कि
समाजवाद आ गइल
कांग्रेसी राज खतम हो गइल
दीया-ढकनी कबे बुताइल
बनिया लोग छपटाता कि
हम ना कुछू पवलीं।
27.10.94