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हिंसा घृणा द्वेष से भरल बाटे सकल विधान
लोकतंत्र भारत के भइया है बिपत्ति के खान
सबके चाहीं राजसिंहासन, सबके चाहीं राज
एक केन्द्र में कइसे घुसरो बहुकेन्द्रीय समाज
बहुकेन्द्रन के खटर पटर से बचे न पाई केन्द्र
देवता से जब देवता जूझे, का करिहें देवेन्द्र
भाई भाई पिता-पुत्र में, पति-पत्नी में रारि
क्षेत्र क्षेत्र में, जाति जाति में होखत बाटे मारि
दूगो गोड़ मिलल चले के दूगो मीलल आँखि
उड़े खातिर चिरइन के मीलल दूगो पाँखि
दस गो आनन भुजा बीस गो, राछछ के पहिचान
बहुदलीय ये लोकतंत्र के भला करें भगवान
भोगली इन्दिरा गाँधी बुझलें राजीव चतुर सुजान
समझ बूझि के नेहरू जी बनववलें संविधान
छिन्न-भिन्न परिवार हो गइल, खण्डित भइल समाज
जातिवाद औ क्षेत्रवाद के लेंगा लागल आज
टुकुर टुकुर ताकें वी.पी. सिंह, राजा नहीं फकीर
देख पंचे ए अखण्ड भारत के ई तस्बीर।
26.02.1998