"एक नापसंद जगह / नलिन विलोचन शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=नलिन विलोचन शर्मा | |रचनाकार=नलिन विलोचन शर्मा | ||
− | }} <poem> | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
एक दिन यहां मैंने एक कविता लिखी थी, | एक दिन यहां मैंने एक कविता लिखी थी, | ||
यहां जहां रहना मुझे नापसंद था। | यहां जहां रहना मुझे नापसंद था। |
11:02, 26 मई 2015 के समय का अवतरण
एक दिन यहां मैंने एक कविता लिखी थी,
यहां जहां रहना मुझे नापसंद था।
और रहने भेज दिया था।
जगह वह भी, जहां रहना अच्छा लगता है
और रहता गया हूँ,
वहां शायद ही हो कि कविता कभी लिखी हो।
आज फिर इस नापसंद जगह
डाल से टूटे पत्ते की तरह
मारा-मारा आया हूँ,
और यह कविता लिख गई है,
इस जगह का मैं कृतज्ञ हूँ,
इस मिट्टी को सर लगाता हूँ,
इसे प्यार नहीं करता, पर
बहुत-बहुत देता हूँ आदर,
यह तीर्थ-स्थल है, जहां
मैं मुसाफिर ही रहा,
यह वतन नहीं,
जहां जड और चोटी
गडी हुई,
जो कविता की प्रेरणाओं से अधिक महत्व की बात है।
यहां मैं दो बार मर चुका हूँ-
एक दिन तब जब पहली कविता
यहां लिखी थी,
और दूसरे आज जब इस कविता
की याद में कविता
लिख रहा हूँ-
घर के शहर में जीता रहा हूँ
और मरने के बाद भी
जीता रंगा :
एक लाकेट में कैद,
किसी दीवार पर टंगा चित्रार्पित,
एक स्मृति-पट पर रक्षित अदृश्य
अमिट।
लेकिन यहां से कुछ ले जाऊंगा,
कुछ तो पा ही
चुका हूँ : दो-दो कविताएं,
दिया कुछ नहीं है, देना कुछ नहीं,
सिवा इसके-
मेरे प्रणाम तुम्हें,
इन्हें ले लो, इन्हें।