भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्षमा प्रार्थना / मुकुटधर पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:58, 16 जून 2015 के समय का अवतरण

पतित जन के पतित मुख से
कढ़ै जो प्रार्थना वाणी
हृदय में आह हो, तन में
तपन हो, आँख में पानी

बहा परिताप के आँसू
न धोता मैल जो उर का
नहा कर सुरसरी में भी
न होता पूत वह प्राणी

हुआ है शान्त यह नभ में
बरस करके जलद जी भर
रुको मत आँसुओं मेरे
बनो मत आज अभिमानी

सुमन ने फाड़कर अपना
हृदय दिखला दिया नभ को
छिपाता पाप को प्रभु से
वृथा रे जीव अज्ञानी

बना उसके चरण-रज को
विनत निज माथ का चन्दन
क्षमा का दान देगा ही
कभी तो वह महादानी

-सरस्वती, जून, 1918