भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुःख में पद / मुकुटधर पांडेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:58, 16 जून 2015 के समय का अवतरण
नाथ अब हर लो मेरी पीर।
तन-पिंजर में बन्द रट रहा, तुम्हें प्राण ज्यों कीर।
दुःख दावानल मेंपड़कर है, जलता आज शरीर
उस पर मनस्ताप नित मुझको मार रहा है तीर
दीन मलीन सरुज जन के प्रभु! नयनों का यह नीर
पोंछेगा हाथों से तुम बिन कौन भला रघुबीर?