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16:05, 18 जून 2015 के समय का अवतरण

कविता लिखूं न लिखू?
कविता के अलावा और भी है बहुत काम
और भी हैं बहुत काम परिणाम कुहराम
उस दुनिया में जिसमें जीता हूं
जिसमें नहीं है कविता बाकी सब है

रोटी चावल चीनी की पुकार-जवाब में डैश है लम्बा
और फटे झोले नदारद जेब की कातरता हर बार
हर बार प्रश्नास्पद आंखे। क्षमा याचना। उधार
पत्नी का पीला उदास अधपका चेहरा
और भूख और भूख और अंधेरे की मार
और दिन और रात का निरन्तर अपमान का सौदा
निरन्तर रौंदा हुआ सुख जिन्दगी का

कागज पत्तर प्रमाण-पत्रों की निरर्थक उपलब्धि: एक भार-साभार!

दफ्तरों की हिंसक जड़ता दोस्तों की दया
बीते होने का असमय एहसास: मृत्युमय जीवन
और खुर जैसे पैरों रूखे चेहरे की हास्यास्पदता

तो फिर कविता...
कविता लिखूं न लिखूं?