"नये साल का वक्तव्य / प्रकाश मनु" के अवतरणों में अंतर
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16:16, 18 जून 2015 के समय का अवतरण
मैं अच्छी तरह समझता हूं-
मेरे पदार्पण के साथ ही
तुम्हारे दिलों में जनम रहा है
जो आतंक-और उदास घबराहट
जो तुम्हारे कांपते हाथों को
और अधिक लाचार कर जाती है!
प्रतीक्षा-अब तुम्हारे निकट
आशाकुल स्वाद नहीं
एक टूटन को बचाने की हरचंद कोशिश है
जिन्दगी और मौत के बीच का एक
जिन्दा तनाव-
जिसने तुम्हें रद्दी की तरह लपेट कर
सन्दर्भ से अलग कर दिया है!
यह वह वक्त है
जब बेचारगी और बेकारी का धुआं
तुम्हारे लिए
हर चीज को धुंधला रहा है
और उपलब्धि के नाम पर
तुम्हारे पीछे
एक काली कुरूप सड़क छूट गई है?
वहां-कहां है अब अस्तित्व?
टूटी चप्पलें और बे-अर्थ
बेहिसाब छूटे हुए पैरों के निशान
देखकर तुम उदास
हो जाते हो
और करने और न करने के बीच
कुछ भी समझ नहीं पाते।
तुम्हें डर है
कि एक और नये साल के स्वागतोत्सव
के बहाने
तुम्हें किसी और साजिश का हिस्सा
न बना दिया जाये
तुम्हारे होंठ
गहरी तड़प की असह्य सहनशीलता
से बिंधे हैं
और तुम भीतर तक ठिठुर गये हो!
मैं कद्र करता हूं तुम्हारी आत्मीयता
और निश्छल वजूद की-
तुम्हारी आस्थाएं मैं सुखाना नहीं चाहता
लेकिन सोचो-
मैं एक रस्मी रुटीन से अधिक कुछ नहीं
मुझ पर जरूरत से ज्यादा भरोसा
मत करो।
अच्छा हो-कि मेरे बजाय तुम खुद को परखो
और आसपास की हर जमीन
जहां कैद है भविष्य/एक निर्मल बीज की तरह।
क्योंकि-
मैं न शुरुआत करता हूं न अन्त
वह तो तुम्हारे ही भीतर है
तुम्हीं से जन्मता है नया काल-संक्रमण!
हर नये साल के असली जनक
तुम-
केवल तुम हो
तुम्हीं से जन्म लेती है नई रोशनी की सार्थकता
जो नये साल को जीवन्त उत्साह में ढालकर
नये रूप में रचती है!