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"दलित कवि को / लालचन्द राही" के अवतरणों में अंतर

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16:49, 1 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

दर्द के दस्तावेज़ को
सहेजकर रखने वाले
मेरे दलित कवि
भारतीय काव्य-जगत
जाग रहा है आपके रूप में
जंज़ीरें तोड़ने के लिए

थक मत जाना
भले ही डंक मारते रहें बिच्छू
कभी-कभी रोगी भी
दर्द बन जाता है चिकित्सक के लिए
किन्तु उपचार नहीं त्यागता वह

काश मुझे भी
अपने आदम से मिल जाए त्रिशूल
तो चुभाता रहूँ प्रतिकूलता पर
और निकालता भी रहूँ
नंगे पाँवों में चुभे शूलों को
हालाँकि
फ़र्क़ दिखाई नहीं पड़ता
आदमी और गैंडे की चमड़ी में।