भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दलित कवि को / लालचन्द राही" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालचन्द राही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:49, 1 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
दर्द के दस्तावेज़ को
सहेजकर रखने वाले
मेरे दलित कवि
भारतीय काव्य-जगत
जाग रहा है आपके रूप में
जंज़ीरें तोड़ने के लिए
थक मत जाना
भले ही डंक मारते रहें बिच्छू
कभी-कभी रोगी भी
दर्द बन जाता है चिकित्सक के लिए
किन्तु उपचार नहीं त्यागता वह
काश मुझे भी
अपने आदम से मिल जाए त्रिशूल
तो चुभाता रहूँ प्रतिकूलता पर
और निकालता भी रहूँ
नंगे पाँवों में चुभे शूलों को
हालाँकि
फ़र्क़ दिखाई नहीं पड़ता
आदमी और गैंडे की चमड़ी में।