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रमुआ ने पूछा
माँ
तुम तोड़ती क्यों / पत्थर—
क्यों चिलचिलाती / धूप में
बरसते
अंगारों के बीच
बैठी हो
चुप्पी साधे
न छाया है
न पानी है
यहाँ तो केवल
तपती दोपहरी है
माँ ने कहा—
'बेटे
दो जून की
रोटी जो कमानी है।