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सरस्वती माँ! वागेश्वरी जय, विभूति वीणा वादिनी जय।
शारदे माँ! सुमति सद्ज्ञान, संचरित तू ही करती है।
ज्ञान की ज्योति से ब्रह्माण्ड, प्रकाशित तू ही करती है।
जगत आद्यंत व्यापिनी जय,
तमस हरिणी, ज्योतिर्मय जय।
धवल वसना, हंसासिनी जय,
कमल नयनी, कमलासिनी जय।
प्राणियों के कंठों में स्वर समाहित, तू ही करती है।
शारदे माँ! धी, प्रज्ञा, ज्ञान, संचरित तू ही करती है।
सच्चिदानंद स्वरुप अनूप,
सत्य विद्यामय शब्द स्वरुप।
ऋतंभरी वाणी का ऋत रूप,
ज्ञान का आदि मूल प्रारूप।
सृष्टि में वाणी सिद्ध प्रवाह, प्रवाहित तू ही करती है।
शारदे माँ! धी प्रज्ञा से, जगत अनुशासित करती है।
प्रभा धृति, मेधा, श्री शुभ नाम
ज्ञान की मूल शक्ति, सुख धाम।
काव्य, स्वर, छंद, व्याकरण, ज्ञान,
कवित, संगीत, अलंकृत गान।
ब्रह्माणी, वागीषा, तू प्राण प्रतिष्ठित इनमें करती है।
मूढ़ को गूढ़ कवि काली, दास माँ तू ही करती है।
वन्दनं कोटि-कोटि प्रणाम, विश्व को मुखरित करती है।
वन्दनं पुनि-पुनि कोटि प्रणाम, कि जड़ता तू ही हरती है।