भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मोर / श्रीधर पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीधर पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:58, 8 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

अहो सलोने मोर, पंख अति सुंदर तेरे,
रँगित चंदा लगे गोल अनमोल घनेरे।
हरा, सुनहला, चटकीला, नीला रंग सोहे,
रेशम के सम मृदुल बुनावट मन को मोहे।
सिर पर सुघर किरीट नील कल-कंठ सुहावे,
पंख उठाकर नाच, तेरा अति जी को भावे।
‘के का’ करके विदित श्रवण प्रिय तेरी बानी,
जरा सुना तो सही वही हमको रस सानी।
बादल जब दल बाँध गगन तल पर घिर आवै,
स्याम घटा की छटा सकल थल पर छा जावे
तब तू हो मदमत्त मेघ को नृत्य दिखावे
अति प्रमोद मन आन हर्ष के अश्रु बहावे
ऐसा अपना नाच दिखा हमको भी प्यारे
जिसे देख रे मोर! मोद मन होय हमारे।

-रचना तिथि: 12.8.1909, नैनीताल;
संदर्भ मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 22