भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भालू / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:35, 9 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

अच्छा, जरा सोच कर देखूँ
कैसे लगते भालू राम,
अगर जो होती उनके मुँह पर
चोंच निराली
तोते जैसी।

और जो होती उनके सिर पर
कलगी प्यारी
मुर्गे जैसी।

अच्छा, जरा सोच कर देखूँ
कैसे लगते यदि दो छोटे,
सींग भी उनके
सिर पर होते।

कैसे लगते, अगर धारियाँ
चीते जैसी
उन पर होती।

कैसे लगते, जो उड़ने को
पंख भी होते,
सारस जैसे।

एक चित्र ही अच्छा ऐसा
जरा बना कर उनका देखूँ,
कैसे लगते भालू राम!