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२०९.
अयोगे युञ्जमत्तानं, योगस्मिञ्च अयोजयं।
अत्थं हित्वा पियग्गाही, पिहेतत्तानुयोगिनं॥
२१०.
मा पियेहि समागञ्छि, अप्पियेहि कुदाचनं।
पियानं अदस्सनं दुक्खं, अप्पियानञ्च दस्सनं॥
२११.
तस्मा पियं न कयिराथ, पियापायो हि पापको।
गन्था तेसं न विज्जन्ति, येसं नत्थि पियाप्पियं॥
२१२.
पियतो जायती सोको, पियतो जायती भयं।
पियतो विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥
२१३.
पेमतो जायती सोको, पेमतो जायती भयं।
पेमतो विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥
२१४.
रतिया जायती सोको, रतिया जायती भयं।
रतिया विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥
२१५.
कामतो जायती सोको, कामतो जायती भयं।
कामतो विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥
२१६.
तण्हाय जायती सोको, तण्हाय जायती भयं।
तण्हाय विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥
२१७.
सीलदस्सनसम्पन्नं , धम्मट्ठं सच्चवेदिनं।
अत्तनो कम्म कुब्बानं, तं जनो कुरुते पियं॥
२१८.
छन्दजातो अनक्खाते, मनसा च फुटो सिया।
कामेसु च अप्पटिबद्धचित्तो , उद्धंसोतोति वुच्चति॥
२१९.
चिरप्पवासिं पुरिसं, दूरतो सोत्थिमागतं।
ञातिमित्ता सुहज्जा च, अभिनन्दन्ति आगतं॥
२२०.
तथेव कतपुञ्ञम्पि, अस्मा लोका परं गतं।
पुञ्ञानि पटिगण्हन्ति, पियं ञातीव आगतं॥
पियवग्गो सोळसमो निट्ठितो।