"मैं लिखूंगा / लोकमित्र गौतम" के अवतरणों में अंतर
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मानता हूँ तुम मेरे शुभचिंतक हो
मानता हूँ तुम्हारे तर्क अकाट्य हैं
मानता हूँ तुम मुझे व्यवहारिकता सिखा रहे हो
मानता हूँ तुम्हारी सलाहें न मानने के कारण ही मैं अब तक असफल हूँ
मगर माफ़ करना मेरे दोस्त
न लिखने की तुम्हारी सलाह मैं अब भी नहीं मानूंगा
अब भी नहीं मानूंगा कि लिखने से कुछ नहीं होता
नहीं मानूंगा कि लिखना समय कि बर्बादी है
या बेहूदी भलमनसाहत
तुम्हारे ताकतवर तर्कों के बावजूद
मैं लिखने का सिलसिला जारी रखूंगा
क्योंकि लिखने के अलावा मैं कुछ नहीं जनता
न लिखना भी नहीं
इसलिए न लिखना मुझसे नहीं होगा
और हाँ मैं सिर्फ इसलिए भी नहीं लिखूंगा कि मैं एक अक्षरशाला में
शब्दों का कारीगर हूँ
जहाँ लोगों कि जरुरत और मांग के मुताबिक
शब्दों का फर्नीचर बनता है
नहीं, मैं इसलिए लिखूंगा क्योंकि मैंने स्मृतिकोशों को खूब खंगाला है
श्रुतियों-प्रतिश्रुतियों को छान मारा है
मगर कहीं भी मुझे पूरी कि पूरी अपनी दास्तान नहीं मिली
एक लाख इक्कीस हज़ार से भी ज्यादा शब्दों वाली अपनी भाषा में
मुझे कोई एक शब्द भी ऐसा नहीं मिला
जो पूरी की पूरी मेरी बात कहता हो
मैं नहीं चाहता कि मुझे उधार के शब्दों और पराये एहसासों से समझा जाय
मै इसलिए लिखूंगा
मै लिखूंगा क्योंकि मैंने खूब पढकर जाना है
कि हर कोई पूरी तरह से सिर्फ अपनी बातें ही लिखता है
वो दूसरों के चाहे जितने नज़दीक हो
पूरी कि पूरी उनकी नहीं होती
मै सालों साल अपने एहसासों को
दूसरे के शब्दों का लिबास पहनाता रहा हूँ
मेरे एहसास उतरन पहनते पहनते
कई बार मुझे ही अजनबी लगने लगते हैं
अपने एहसासों को अपना बनाये रखने के लिए लिखूंगा
मै लिखूंगा क्योंकि यह सिर्फ मै ही जानता हूँ कि वह लडकी
दूब से ज्यादा लचीली थी
जिसे बेईमान मौसम ने लकड़ी बना दिया
लिखूंगा
क्योकि सुन सुनकर बोलते बोलते मैं थक चुका हूँ
लिखूंगा
क्योंकि देख देखकर सीखते सीखते मशीन बन चुका हूँ