भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सपने की बात / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:41, 14 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

सुनो, सुनो सपने की बात!
मैंने देखा ,
मेरे मुँह पर लम्बी-सी दाढ़ी उग आयी,
दादा जी के मुँह में निकले
दो छोटे दुद्धू के दाँत।

मैंने देखा, स्कूलों में
छुट्टी ही छुट्टी है हर दिन,
पहली बार हुआ जब
हफ़्ते में आये हैं संडे सात।

मैंने देखा,
सरकारी आदेश हुआ है,
अब से बूढ़े-बड़े सभी
मानेंगे बस बच्चों की बात।
सुनो, सुनो सपने की बात!