भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सड़कें ख़ाली करो / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:43, 14 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
सड़कें ख़ाली करो कि बच्चे आते हैं!
एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड को
जैसी जल्दी होती है,
कुछ-कुछ वैसी ही हम
बच्चों की सरदर्दी होती है।
पर शहरों के लोग समझ कब पाते हैं!
वी.आई.पी. गुज़रें तो
कुछ और नज़ारा होता है,
उन्हें पता क्या बच्चों का
किस तरह गुज़ारा होता है।
पेपर देने तक से वे रह जाते हैं!
कॉलोनी के अन्दर अब
घुसपैठ हो चुकी कारों की,
नहीं किसी को चिन्ता है पर
बच्चों के अधिकारों की।
वैसे बाल-दिवस पर क़समें खाते हैं!
सड़कें ख़ाली करो कि बच्चे आते हैं!